युवा मतदाताओं को ज्ञान नहीं समाधान चाहिए

लेखकराजीव तिवारी (महेश शुक्ला के साथ एक वार्तालाप पर आधारित)

युवा मतदाता जिनकी वोटों में हिस्सेदारी करीब ३६% है उन्हें चाहिए बदलाव जबकि काफी नेता अभी भी उलझे हैं पुराने पैंतरों में जिसमें उन्हें सिर्फ जातीय समीकरण ही दिखते  हैं। और जो पहली बार मतदाता बन रहे हैं उनमे से अधिकांश को पता ही नहीं है कि आज जो कानून का राज्य, स्वास्थ्य  सुविधाएं, नई सड़कें, नए  एयरपोर्ट, नयी रेलगाड़ियां, और लाखो करोड़ो का निवेश उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बना रहा है उसे कभी उल्टा प्रदेश के नाम से जाना जाता था। और  जो आज हो रहा है उसका स्वप्न भी बस कुछ ही लोगो को दिख रहा था ।

इस नवीन वातावरण में बड़े हुए इन इन नए मतदाताओं की सोच  और आकांछाये काफी कुछ अलग है। इन युवाओं के पास है मोबाइल फ़ोन जिस से मिलती हैं उन्हें पूरे विश्व की खबरें।  उनकी सोच स्थानीय सीमाओं से कहीं आगे है क्यूंकि उसके हाथ में है मोबाइल जो उन्हें  जो भी ज्ञान चाहिए सरलता से उपलब्ध करा देता है।  अपने आस पास के वातावरण से वह परिचित और  ढूंढ रहा है अपनी आकांछाओं और सपनो की  राह। उन्हें ज्ञान नहीं समाधान चाहिए।  

युवा कहते हैं सोच बदलो देश बदलेगा 

जब हमारे देश के प्रधान मंत्री बार कहते हैं कि वोह भारत को तीसरी बड़ी अर्थव्यस्था बनाएंगे  तो यह उनको युवाओ की सोच से सबसे अघिक जोड़ती है।  क्यूंकि  उनके  लिए भविष्य भूतकाल और वर्त्तमान से ज्यादा महत्वपूर्ण है। उनके स्वप्न तो भविष्य में ही तो होते हैं।  युवा चाहे ग्रामीण भारत से हो या फिर शहरों से उसके स्वप्न एक जैसे ही होते हैं।  मुझे हैरानी होती है जब मै देखता हूँ कि पशुपालन से लेकर आधुनिक खेती तक के अनगिनत वीडियो साधारण से दिखने वाले ग्रामवासियों द्वारा बनाये जा रहे हैं और उनके दर्शक लाखों में हैं। ऐसा करीब करीब हर छेत्र में हो रहा है जो दिखाता है डिजिटल भारत की ताक़त।  हर गांव और गली में आपको कोई न कोई उदहारण मिलेगा किसी ऐसे बालक या बालिका का जिसने नौकरी ढूढ़ने की जगह नौकरी देना वाला बनने का संकल्प लिया और भीड़ उसको साकार भी किया है। छोटी छोटी गलियों और छोटे छोटे गाओं से विदेश में जाकर भारत का मान सामान बढ़ाने के अनगिनत उदहारण आपको गूगल करके आसानी से मिल जायेंगे। लेकिन राष्ट्रीय मीडिया आपको अपवाद ही ज्यादा दिखायेगा क्यूंकि अभी भी पत्रकारिता में यह माना जाता है कि नकारात्मक समाचार ही समाचार होते हैं।  ऐसे अगर हम अपने आचरण में ले आये तो क्या होगा इस पर मुझे व्याख्या करने की आव्यशकता नहीं है। युवा वर्ग मोदी को इसलिए पसंद करता है क्यूंकि वह सकारातमक विश्वव्यापी सोच साँझा करते हैं हर विषय पर। 

डिजिटल भारत  का प्रभाव 

प्रिंटिंग प्रेस आने से १९ वी शताब्दी में हमारी दुनियाँ  पूरी तरह से बदल गयी थी क्यूंकि नए उपकरणों की बाढ़ आ गयी थी।  जरा गूगल खोज करिये तो पता लगेगा कि आपके इस्तेमाल के लगभग सारे उपकरणों का अविष्कार १९वी शताब्दी में ही हुआ था। अब सोचिये कि अगर प्रिंटिंग प्रेस के आने से इतना कुछ हुआ तो इस डिजिटल दुनिया की क्रांति कितनी बड़ी है और कितनी और बड़ी हो सकती है।  वह परम्परावादी लोग  जिनकी सोच राष्ट्रीय अखबारों और टीवी चैनेलो तक ही सीमित हैं शायद उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि अब सोशल मीडिया  पर पढ़े लिखे और अनपढ़ो को भी सुनने और देखने वालो की संख्या इन राष्ट्रीय चैनेलो से कई गुना ज्यादा है और प्रभावशाली भी है।  विश्वसनीयता भी ज्यादा है क्यूंकि खेमो में बटें एजेंडा पत्रकारिता करने वाले अधिकांश  राष्ट्रीय मीडिया की पोल अब पूरी तरह खुल चुकी है। युवाओ से पूछिए तो पता चला चलेगा कि वोह कितना कम महत्व देते हैं राष्ट्रीय चैनेलो और अख़बारों को। एक सर्वेक्षण के अनुसार सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वालों की  संख्या ४०% से ज्यादा है और युवाओं में यह ६०% से ज्यादा है।  ५२% से ज्यादा ऑनलाइन ही समाचार भी देखते हैं और करीब ४८% को यूट्यूब, फेसबुक  और ऐसे अन्य विकल्प ज्यादा पसंद आ रहे हैं। जब बदलाव आता है उसका सबसे अधिक समर्थन युवा ही करते हैं क्यूंकि उन्हें नए आयामों की तलाश होती है और स्वभावतः वोह लीक से हटकर सोचते हैं।  

निजी अनुभवों की कुछ कहानियाँ  

मुझे  बस्ती जिले के अपने गांव मँझारिआं विक्रम कुछ समय पूर्व जाने के अवसर मिला।  अपने खेतो के ठीक पीछे एक बड़ा मेडिकल कॉलेज और एक बड़ा विद्यालय देख कर मै आश्चर्यचकित हो गया। पता चला कि मेडिकल कॉलेज ४०० बेड का है और वहां उस दिन एक स्पाइनल सर्जरी भी हो रही थी। डायग्नोस्टिक निशुल्क थी और बहुत सारी दवाएं भी।  हमारे परिवार के सभी सदस्य एकत्र हुए थे क्यूंकि हमें अपनी पारिवारिक भूमि का रजिस्ट्रेशन करवाना था।  पता  चला की सारी कार्यवाही ऑनलइन होगी क्यूंकि उत्तर प्रदेश में भूमि के रिकॉर्ड ऑनलाइन उपलब्ध हैं । मेरे लिए यह सब कल्पना से परे था।  

महेश जी ने एक बड़े कपडा व्यापारी के बारे में बताया  जिनके पुत्र ने सारा व्यापार मुंबई में बैठकर ऑनलाइन कर लिया था और और कई गुना बड़ा भी।  इसके बाद एक के बाद एक अचरज भरी मुलाकाते हुई हैं नै पीढ़ी के भावी मतदाताओं से। मुझे अचरज हुआ  उनकी सोच पर  और उन्हें अचरज था मेरे साधारण ज्ञान पर।  कुछ किस्से आपसे भी साँझा करता हूँ जिस से आपको को भी अंदाजा हो जायेगा कि समाज के हर वर्ग की नै पीढ़ी की सोच में कितना बदलाव आया है और फिर सोचते ही हैं कि इन पहली बार वाले मतदाताओं के मन की बातें।  

हमारे बस्ती वाले घर में एक अनपढ़ नयी नयी मतदाता बनी लड़की घर की साफ़ सफाई और खाना बनाने आती है। उसके हाथ में एक नया महंगा मोबाइल देख उत्सुकतावश हमारे बड़े भाई साहिब ने उस से पुछा कि कितने का है।  उसका जवाब था १०,००० का। उसका वेतन देखते हुए अचरज हुआ लेकिन उसने बताया कि खाने को अनाज मुफ्त मिल रहा है और पक्का घर बनाने का और घर में टॉयलेट बनाने  का पैसा भी मिला है।  उसकी बचत हो गयी क्यूंकि उसका पति खुद मिस्त्री का काम करता है।  थोड़ी देर बाद उसने सकुचाते हुए बताया कि उसके पास क्रेडिट कार्ड है और वह उसका इस्तेमाल करके एक कूलर खरीदना चाहती है। दूकान पहुंच कर जब उसने ई एम् आई के बारे में पुछा तो सबके अचरज का ठिकाना न रहा।  

स्टेशन जाने के लिए मैंने गुरुग्राम में एक टैक्सी ली थी। ड्राइवर बिहार के एक छोटे कस्बे का था और उसकी उम्र भी काफी कम लग रही थी। रास्ते में उसने बताया कि रूस और उक्रेन की लड़ाई से हमें कितना फायदा हो गया तेल के दामों में लेकिन महगाई भी बढ़ गयी है। पता चला कि खली समय में ड्राइवर आपस में मोबाइल द्वारा मिली न्यूज़ पर पूरी चर्चा करते हैं और फिर आकलन करते हैं की उनके जीवन पैर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है।  उसे पूरी जानकारी थी कि इस युद्ध में भारत क्या कह रहा है और वह कितना सही या गलत है। उसकी सोच बिहार तक सीमित नहीं थी और ज्ञान का छेत्र भी काफी विस्तृत था। 

बस्ती के किसानों  ने समझाया नकारातमक और सकारातमक सोच का अंतर 

बस्ती में ही महेश जी ने किसानो के समूह से मिलवाया। मेरी कल्पना में तो था की उनकी स्थिति दयनीय होगी क्यूंकि खेती में तो लाभ की गुंजयाश कम ही होती है।  युवा किसानों ने बताया कि किसान की सबसे बड़ी शक्ति होती है उसका स्वाभिमान।  उन किसानो में अधिकतर वोह किसान थे जो नौकरी करना नहीं चाहते थे लेकिन उनके परिवार के सदस्यों के बढ़ने से उनकी जमीन पूरे परिवार का पोषण नहीं कर सकती थी।  एक युवा किसान ने बताया कि कैसे उसने उधार लेकर ट्रेक्टर खरीदा और फिर खुद ड्राइवर बनकर दूसरो के खेत जोतने और ढुलाई का कार्य आरम्भ किया।  एक वर्ष में ही उसने ट्रेक्टर का पूरा कर्ज कड़ी मेहनत कर चूका दिया और फिर दूसरा ट्रेक्टर खरीद और फिर तीसरा। अब तीनो ट्रैक्टरों पर उसके पास ड्राइवर हैं और वह खुद एक ट्रेक्टर कंपनी के लिए मार्केटिंग  करता है और वह भी पार्ट टाइम।  ऐसे कई उदहारण दुसरे किसानो ने भी दिए।  ऐसा इसलिए संभव हुआ क्यूँकि बिना बिचौलिये के उन्हें कर्ज मिला और उस ऐसे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि उन्हें यह ज्ञान सहज ही प्राप्त हो गया था क्यूंकि सबके पास सरकारी नियमो और बैंको से कर्ज लेने की पूरी जानकारी मोबाइल द्वारा आसानी से उपलब्ध है।

इस घटना ने मुझे और भी ज्यादा अच्छी तरह से समझा दिया सकारातमक और नकारात्मक सोच का फर्क।  

राजीव तिवारी 

3 Comments

  1. बहुत सुन्दर, सारगर्भित लेख… साधुवाद तिवारी जी 🙏🏻🙏🏻

  2. अत्यन्त सकारात्मक लेख। आज की सच्चाई को दर्शाता है और अपवाद तथा नकारात्मकता दिखाने वालों पर समुचित प्रहार करता है।
    राजीव जी ऐसे लेख लिखते रहें और समाज को जागरूक बनाते रहें ।

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